27.3.09

आ रही है चमन से बू-ए-कबाब


आ रही है चमन से बू-ए-कबाब
यह ग़ालिब के शेयर का वह मिसरा है जो बहादुर शाह जफर की बेटी के जहन में उस समय आया जब वह अपनी सखियों के साथ बाग में झूला झूल रही थीं। उन्होंने इसे अपने वालिद बहादुर शाह जफर से इसे पूरा करने को कहा। हलांकि वह खुद भी शायर थे पर वह इसे पुरा ना कर सके और अपने उस्ताद शायर शेख इब्राहिम ज़ौक से इसे पूरा करने की गुजारिश की लेकिन वह भी इसे पूरा नहीं कर सके। ज़ौक ने कहा कि इस शेयर को तो कोई फकीर शायर ही पूरा कर सकता है और दिल्ली में एक ही फकीराना शायर है, गालिब। चलते-चलते बात ग़ालिब तक आ पहुंची। उन्होंने ज़ौक और बहादुरशाह के कहने पर इस मिसरे पर पूरा शेयर कहने की बात मान ली।
ग़ालिब बहादुर शाह की बेटी और उनकी सखियों को उसी बाग में लेकर गए जहां झूल झूलते हुए यह मिसरा इल्हाम हुआ था। ग़ालिब ने दुख्तर-ए-बहादुरशाह जफर को उसी तरह झूला झूलते हुए मिसरा बोलने को कहा। बार-बार कहा और ग़ालिब खुद आंखे मूंद कर बैठ गए। वह बोलती रही, आ रही चमन से बू-ए-कबाब..आ रही है चमन से बू-ए-कबाब... अचानक ग़लिब बोल उठे,किसी बुलबुल का दिल जला होगा।

आ रही है चमन से बू-ए-कबाब,
किसी बुलबुल का दिल जला होगा।


इतना सुनते ही बहादुर शाह की बेटी अश-अश कर उठी और ग़ालिब को झुक कर सलाम किया।
इस बात कर पता जब बहादुरशाह जफर और उनके उस्ताद शायर ज़ौक को चला तो उन्होंने ग़ालिब की खूब तारीफ करते हुए कहा कि इसे सच में ग़ालिब ही पूरा कर सकते थे।
यूं ही नहीं कहा जाता

--गालिब का है अंदाज-ए-बयां और..

3 comments:

  1. बिल्कुल सही कहा आपने .. --गालिब का है अंदाज-ए-बयां और.. जानकारी देने का शुक्रिया

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