26.3.09

मन के आंगन में उतरी एक गज़ल


आरकुट पर तफरीह करते हुए। हमें यह ग़जल मिली। श्रद्धा जैन की इस रचना में उन्होंने काव्य के प्रति अपनी पूरी श्रद्धा को उड़ेल दिया है। इसमें गहराई भी है और बुलंदी भी।
ग़ज़ल
आप भी अब मिरे ग़म बढ़ा दीजिए।
मुझको लंबी उमर की दुआ दीजिए।
मैने पहने हैं कपड़े, धुले आज फिर,
तोहमतें अब नईं कुछ लगा दीजिए।
रोशनी के लिए, इन अंधेरों में अब,
कुछ नहीं तो मेरा दिल जला दीजिए।
चाप कदमों की अपनी मैं पहचान लूं,
आईने से यूं मुझको मिला दीजिए।
गर मुहब्ब ज़माने में है इक ख़ता,
आप मुझको भी कोई सज़ा दीजिए।
चांद मेरे दुखों को न समझे कभी
चांदनी आज उसकी बुझा दीजिए।
हंसते हंसते जो इक पल में गुमसुम हुई,
राज़ श्रद्धा नमी का बता दीजिए।
-श्रद्धा जैन





4 comments:

  1. ashok ji badhaaee ho aapko... halaaki ye gazal meri shradha ji ki sabse pasandida gazalon me ek hai,pahale bhi bahot baari padh chuka hun magar ek baargi fir se padhawaane ke liye dhero shukriya aapka... shradha ji khud gazalgoee me ya kahe ki gazal lekhan me dakhal rakhti hai...

    abhaar
    arsh

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  2. श्रधा जी को पढना हमेशा एक सुखद एहसास देता है...बेहद खूबसूरत रचना...
    नीरज

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  3. बेहतरीन लिखतीं हैं श्रद्धा जी बहुत ही सुंदर रचना के लिए बधाई

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