9.3.09

गर्व कीजिए मगर गौर भी

नरेंद्र अनिकेत
स्लमडॉग मिलेनियर और स्माइल पिंकी को आस्कर मिलने से देश में उत्सवी माहौल है। यह जश्न अभी चलेगा। हम मुग्ध हैं कि हमें इस लायक समझा गया। इससे पहले एक बार और हम मुग्ध हुए थे, जब देश की बेटियों के सौंदर्य का लोहा दुनिया ने माना था। एक के बाद एक कई लड़कियां विश्वस्तरीय सौंदर्य प्रतियोगिताओं में सफल रहीं।
लेकिन, आत्ममुग्धता के शिकार भारतीय समाज को एक बात पर भी गौर करना चाहिए कि जिस दिन हम ऑस्कर का उत्सव मना रहे थे उसी दिन आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद के एक अस्पताल में एक मां अपनी नवजात बच्ची को बेच चुकी थी। उसने यह कदम वहां के सरकारी अस्पताल की फीस अदा करने में असमर्थतावश उठाया था। खबर लीक हो गई और बिकी हुई बच्ची मां के पास वापस पहुंच गई।
हैदराबाद एक ऐसा शहर है जहां से सबसे ज्यादा लड़कियां खाड़ी देश के शेखों से रुपए के बदले ब्याही जाती हैं या फिर घरेलू नौकरानी बनने के बहाने खाड़ी देश भेजी जाती हैं। कुछ साल पहले सूखे की स्थिति की भयावहता को दिखाने के लिए 19 साल की एक लडक़ी को खरीदा और फिर उसे खबर की तरह पेश किया था। अमीना की खबर तो शायद अब किसी को याद भी नहीं जिसने हैदराबाद और आंध्र प्रदेश में चल रही इस तरह की बातों को सामने लाया था।
हैदराबाद को हम निशाने पर शायद इसलिए भी ले रहे हैं कि वहां से खबरें हम तक आ जाती हैं। देश के कई अन्य हिस्सों में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है जहां से खबरें सामने नहीं आतीं और कई बातें पर्दे में रह जाती हैं। पंजाब में विदेश जाने के नाम पर जो कुछ होता है उसमें से सिर्फ ठगी की खबरें ही सामने आती हैं। इस राज्य में एक नई परंपरा भी चल रही है जिसकी खबर अभी तक बहु प्रचारित नहीं हो पाई है। वह परंपरा है विदेश जा बसे व्यक्ति की तस्वीर से शादी करने की परंपरा। ऐसी कई लड़कियां हैं जो विदा हो कर विदेश जाने के लिए अपने पतिदेव का इंतजार कर रही हैं। भ्रुण हत्या के लिए केवल पंजाब को दोषी ठहराना उचित नहीं है। देश के अन्य राज्यों में भी बेटे पाने की ललक है और उसकी आड़ में जो कुछ होता है वह सामने नहीं आता।
गर्व के इन क्षणों में हम एक और रिपोर्ट की याद दिलाना चाहते हैं। कोसी का कहर झेल चुके बिहार के उस बड़े इलाके से किशोर वय के लडक़ों का बड़े शहरों की तरफ आना। दलाल वहां सक्रिय हैं और अच्छी नौकरी और पैसे की लालच देकर बच्चों को देश के दूसरे हिस्से में ले जा रहे हैं। ऐसे ही कुछ बच्चों को पिछले दिनों बिहार के कटिहार रेलवे स्टेशन पर जीआरपी ने पकड़ लिया था। उनमें से कुछ बच्चों ने बड़े शहरों तक जाने के पीछे जो तर्क दिए उससे किसी भी गर्वोन्मत्त समाज का गर्व चूर-चूर हो जाता है। एक बच्चे ने बताया था कि उसकी बड़ी बहन की शादी के लिए पिता ने जो कर्ज लिया वह चुकता नहीं हो पाया। जो जमीन थी उसमें अब कोसी का बालू भर गया है, खेती हो नहीं सकती। महाजन का रुपया दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है और दूसरी बहन ब्याह के लायक हो गई है। वह बड़े शहर में जा कर नौकरी करेगा ताकि उसकी कमाई से पिता दूसरी बहन की शादी करा सकें और पहली की शादी का कर्ज चुकता कर सकें। यहां यह बताना मुनासिब है कि कर्ज कोई लाख दो लाख नहीं तीन से चार हजार रुपए का ही है। किसी को भी यह छोटी राशि लगेगी, लेकिन बचपन को लीलने के लिए यह रकम कम नहीं है। उन्हीं बच्चों में सात साल का एक बच्चा जो कह गया वह हमारे सभी जश्न पर पानी फेरने वाला है। उसकी भी कहानी पहले के जैसी ही थी। उसकी भी बहन की शादी होनी थी और कोसी की बाढ़ के बाद हालात ऐसे हो गए थे कि रुपए का प्रबंध अगले पांच सालों में भी संभव नहीं था। इसलिए वह दिल्ली जा रहा था, नौकरी करने। उसने बताया कि यदि समय पर बहन की शादी नहीं हो पाई तो समाज उसके परिवार को बहिस्कृत कर देगा।
ये सूचनाएं हमारे उस समाज की बानगी है जो गरीबी और उपेक्षा का दंश झेलता है। उस दंश को महिमामंडित कर जो कुछ प्राप्त हो रहा है उस पर हम गर्व कर रहे हैं। हो हम इस बात पर भी फख्र कर सकते हैं कि हमारे यहां आज भी महाजनी सभ्यता का क्रूर पंजा जीवित है। यह जिंदा है तो वह वर्ग जिंदा है जिसकी कहानी हमें गर्व करने के लायक बनाती है।
हम भारतीय इस बात का अनुमान नहीं लगा पाते हैं कि दुनिया हमारा सम्मान क्यों कर रही है। यह अंतरदृष्टि हमारे पास नहीं है। 90 के आसपास दुनिया की अर्थव्यवस्था में मंदी की जैसी स्थिति पैदा हुई थी। उस समय भारत के बड़े बाजार की तरफ संपन्न देश देख रहे थे। यहां के बाजार में उपभोक्ताओं को रिझाने का माध्यम यहीं की लड़कियां हो सकती थीं इसलिए लड़कियां सुंदर होने लगीं। आज भी मंदी है और भारत की विकासशील अर्थव्यवस्था पर उसका किंचित असर ही है। मंदी के इस अवसाद को दूर करने के लिए दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमरीका को काले ओबामा में आशा की किरण दिख रही है और वहां के लोगों को स्लमडाग मिलेनियर में उस अवसाद से बाहर निकले की जीवनी शक्ति।
यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि विकसित देश आपको सेंतमेत में कुछ दे देंगे। उनके देने में भी लेने का भाव निहित होता है। वे जो दे रहे वही ले भी रहे हैं। यही लेनदेन बाजार का मूल मंत्र है।
सफलता पर गर्व करना चाहिए। हम भी गर्व कर रहे हैं। धरावी को गर्व है। उत्तर प्रदेश को गर्व है। पंजाब को गर्व है। तमिलनाडु को गर्व है। केरल को गर्व है। पूरे देश को गर्व है। गर्व के इन क्षणों में गौर करने के लिए और भी स्लमडाग हैं और कई पिंकी भी जो मुस्कुराने के लिए प्रतीक्षारत हैं। जिनके पास अस्पताल की फीस अदा करने को पैसे नहीं हैं। जो महज दो हजार की फीस के लिए बिक रही हैं या बेची जा रही हैं। इन पर गौर भी कीजिए।
उप समाचार संपादक, दैनिक भास्कर, डीसी दफ्तर के समीप, जालंधर, पंजाब

3 comments:

  1. ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है .....
    मेरी शुभकामनाएं .............

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  2. भई वाह !
    रंग रची मंगलकामनायें ..

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