26.2.09

दिल से

इस बार पढ़ें इबलीस
इबलीस पेशे से डाक्टर, शौक से पत्रकार और दिल से कवि है। संस्कृति और लोकयान के बारे में उसकी जानकारी कमाल की है। अपने ज्ञान भंडार के जरिए मिलने वाले को अपना कायल कर लेने की कला भी उसे खूब आती है।
प्रामर्श

दोस्तो...
चांदी के चंद सिक्के अद कर
चद्दर-कुशई करत समय
काभी भूल कर भी
वेश्या की आंखो में मत झांकना
वर्ना
उसके आंसुओं के खारे समंदर मे डूब जाओगे
और हो सकता कि वह
मां-बहन बहु या बेटी बन
आपके सामने आ खड़ी हो
और धरती
चाहते हुए भी
समा जाने के लिए
आप को जगह ना दे...!!!

ऐ कातिल
ऐ मेरे क़ातिल
तुझ से तो
तेरी तलवार ही
गैरतमंद निकली
कत्ल करके मेरा
छुपा लिया है जिसने
मुंह अपना
म्यान में...!!!
पिजंरा
पिजंरे ही पिजंरे हैं जारों ओर
मोह के!
माया के!
ममता के!
दौलत के!
शोहरत के!
बदनामी के!
गुमनामी के!
मनुष्य कैद है...
आकाश मुंह चिढ़ा रहा है।

हथेलियों से गिर चुकी दुआ
न घोड़े है
न घुड़सवार।
उठता है तो धूलि का $गुबार
सुनाई पड़ती हैं
तो घोड़ो की टाप
या फिर
मुंह पर पल्लू ओढ़े सिसक रही
उस औरत की सिसकियां
झोंक दिया गया जिसका पति
अमन के नाम पर
जंग की भट्ठी में।
दूर... प्राथनाघरों में से
ओम् शांति-शांति
व सरबत के भले की
आवाजें सुनाई दे रही हैं
पर $फौजी की पत्नी से बढ़ कर
अमन के लिए अरदास
कोई नहीं करता...!!!

आंखे
रंगीन सपनों की कैनवस ही नहीं,
यह $कतलगाह भी होती हैं
जहां खुद-ब-खुद चल कर पहुंचता है
अकसर
हमारा कोई न कोई सपना
जि़बाह होने के लिए...!!!

बगावत
वह बीज...
जो पचाया नहीं जाता
जब किसी भी पक्षी अमाश्य से
तो फिर
उगना ही होता है उसे
वृक्ष बन कर
महल-मुनारों की दिवारों में
दरारें डालने के लिए...!!!

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