tag:blogger.com,1999:blog-44540804574405309092024-03-06T00:50:14.637-08:00प्रसंगसाहित्य कला और संस्कृति काUnknownnoreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-4454080457440530909.post-57654770922483871892009-04-08T04:59:00.000-07:002009-04-08T05:04:09.226-07:00नया पादुका पुराण<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgIrVIqsrqOWqtmFNEwyyFI36j6pxCTfvKISw5-EuxNDP6cB1EeDAIOmoI36s30H3FMXHXuvahO2CK3JvN2pOJAyT0GDJF-e99r_KLC6AEU3DVsyy-3EsmBAhuKwKLIZ2wmwkRoCaM64y8g/s1600-h/shoecombi.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5322289309472917874" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgIrVIqsrqOWqtmFNEwyyFI36j6pxCTfvKISw5-EuxNDP6cB1EeDAIOmoI36s30H3FMXHXuvahO2CK3JvN2pOJAyT0GDJF-e99r_KLC6AEU3DVsyy-3EsmBAhuKwKLIZ2wmwkRoCaM64y8g/s320/shoecombi.jpg" border="0" /></a> इन दिनों पादुका का आधुनिक रूप जूता पत्रकारों का हथियार हो गया है। जूता चर्चा में है और नेता साकते में। इराक से शुरू हुई यह कहानी वाया लंदन भारत तक पहुंच गई है। इराकी पत्रकार ने जार्ज बुश पर अपने देश में हो रहे अमरीकी अत्याचार के खिलाफ जूता दे मारा था। पत्रकार गिरफ्तार कर लिया गया और उसे सजा हुई। इसके बाद चीन के प्रधानमंत्री कामरेड बेन जिआबाओ पर लंदन में जूते फेंके गए। फेंकने वाला पत्रकार नहीं था। अब भारत में दैनिक जागरण के एक ऐसे पत्रकार ने जूता चलाया है जिसे सबसे शांत और सुलझा हुआ माना जाता है।<br />दरअसल इन घटनाओं के मूल में जो बातें हैं वह खबरों की हुल्लड़बाजी में दब गई है। इराकी पत्रकार का जूता उस बुश के चेहरे पर था जिसने एक खराब शासन से मुक्ति दिलाने के नाम पर इराक को तबाह किया। अर्थात एक राक्षस के चंगुल से मुक्ति दिलाने वाला दूसरा राक्षस ही निकला। नए राक्षस के पास मीडिया की ताकत थी उसने अपना चेहरा भद्र दिखाया। दुनिया का भयादोहन कर इराक पर हमला करने वाले के पास अपने कारनामे को जायज ठहराने का ठोस कारण मौजूद नहीं था।<br />जिआबाओ पर फेंके गए जूते का अर्थ भी साफ था। तिब्बतियों की आजादी और उनके मानवाधिकार हनन करने वाले साम्यवादी दंभी की ओर उछला जूता सोदेश्य था। तिब्बत को चीन ने जिस तरह हड़पा और वहां जिस तरह के अत्याचार किए हैं यह किसी से छिपा नहीं है। सर्वहारा समाज की तानाशाही की बात करने वालों ने एक देश को तबाह कर दिया। वहां किसी प्रकार की क्रांति नहीं की, लोगों पर अपना विचार थोप दिया। जूता इसका विरोध कर रहा था।<br />गृहमंत्री चिदंबरम पर उछले जूते का भी अर्थ है। लेकिन यहां वह असली वजह छिपी हुई है। अपने पेशेवर मित्रों में जरनैल बेहद सुलझे इंसान माने जाते हैं। उनके इस कारनामे से उनके मित्र और जानकार हैरत में हैं। आखिर जरनैल ने ऐसा किया क्यों। घटना के बाद जरनैल भी उस असली वजह का उल्लेख नहीं कर रहे जिसने उन्हें विरोध का यह तरीका अपनाने के लिए मजबूर किया। मीडिया में चीखोपुकार मची है। हर कोई जरनैल के किए को गलत ठहरा रहा है और जरनैल भी उसी राग को दोहरा रहे हैं।<br />हम भारतीय हैं। असली बात छिपा लेना हमारी फितरत में शामिल है। जूता फेंकना हमारे देश में कोई नया फैशन नहीं है। आजादी से पहले से हम जूता फेंक रहे हैं और अर्थ को अनर्थ के रूप में पेश कर रहे हैं। आजादी से पहले नीलहे किसानों की दुर्दशा पर लिखे गए नाटक का मंचन हो रहा था। एक दिन नाटक देखने ईश्वर चंद विद्यासागर भी पहुंच गए। नाटक में नीलहे किसानों के ऊपर अत्याचार करने वाले अंग्रेज जमीदार की भूमिका निभा रहे पात्र का अभिनय इतना दमदार था कि विद्यासागर जैसे सुशीक्षित व्यक्ति आपा खो बैठे और उन्होंने अपनी पादुका उतार कर दे मारी। यह मालूम नहीं कि उनकी पादुका अभिनेता को लगी या नहीं, पर नाटक खूब चला। विद्यासागर जैसी हस्ती की पादुका ने नाटक की विषयवस्तु से ज्यादा उसकी प्रस्तुति को प्रमुख बना दिया। नीलहे किसानों पर हो रहा अत्याचार गौण हो गया। नाटक जागृति फैलाने की जगह कुछ और हो गया।<br />साहित्य में एक अवस्था होती है साधारणीकरण। यह वह अवस्था जो साधना में योग की होती है। जिस तरह योग में साधक अपनी निजता भूल जाता है उसी तरह साहित्य में सुधी पाठक, श्रोता और दर्शक अपनी निजता भूल जाता है। वह थोड़ी देर के लिए साहित्य की विधा के साथ जीता है। वह पात्रों में जीने लगता है। यही अवस्था साधारणीकरण है। विद्यासागर भी साधारणीकरण की अवस्था में चले गए थे और अत्याचार देखकर यह भूल गए थे कि यह महज नाटक है जो असल जिंदगी में हो रहे जुल्म की अभिनय प्रस्तुति भर है। योगी और पाठक में एक अंतर है। योगी जब तक चाहे अपने आपको लीन रख सकता है, पाठक ऐसा नहीं कर सकता। यही कारण है कि पाठक जब साधारणीकरण से संसारीकरण में लौटता है तो उसे अपनी बीती स्थिति पर खीज होती है। उसे लगता है कि वह कैसे पात्रों के साथ हंसता-रोता रहा। दिल्ली की घटना में जरनैल की हालत भी कुछ-कुछ वैसी है और उस घटना का ब्योरा देने वालों विश्लेषण करने वालों चरित्र नीलहे किसानों पर अत्याचार दिखाने वाले नाटक कंपनी के संचाल जैसा। जरनैल का जूता कई सवाल और अर्थ लिए हुए है।<br />जरनैल लंबे समय से दैनिक जागरण में हैं। वे जोड़तोड़ नहीं जानते। अपने काम से काम रखते हैं और मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि उनकी कापी बाकी के उछलू रिपोर्टरों से कहीं ज्यादा अच्छी होती है। जागरण में काम करने के दौरान के अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि उन्होंने कभी किसी चूक पर ध्यान दिलाए जाने पर अपनी वरिष्ठता की धौंस नहीं जमाई। बहुत विनम्र शब्दों में सुझाव को माना। बाकी लोगों के व्यवहार को यहां लिखकर दुश्मन पैदा करने का साहस मुझमें नहीं है। कई लोग अब जागरण में नहीं हैं जिनकी कापी पढऩे से पहले हम रोया करते थे। गलती पर ध्यान दिलाए जाने पर अफसरी घुड़की के साथ और भी कई प्रकार के दंड सहने पड़ते थे। उस अखबार में जरनैल लंबे समय से टिके रहे तो इसका कारण यह नहीं कि उनकी वहां बहुत इज्जत हो रही थी या है। जाहिर है हिंदी पत्रकारिता में जगह बनाने के लिए जरूरी हथकंडे उनके पास नहीं हैं। देखते-देखते अफसरी छांटने वाले कई लोग दूसरी जगहों पर गए और वापस इज्जत के साथ लौटे भी। जरनैल जहां के तहां रह गए। उनके पास जो बीट रही उसमें पृष्ठभूमि के अभाव में वे कुछ उल्लेखनीय नहीं कर पाए। मसलन उनका पूरा व्यक्तित्व एक रिपोर्टर के पीछे छिप गया। यह बात कहीं न कहीं उनके अवचेतन में है।<br />इसके अलावा हमें आज के दौर में नेताओं के करीबी पत्रकारों और उनके प्रायोजित साक्षात्कारों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। लाइट कैमरा एक्शन वाली पत्रकारिता के इस युग में प्रिंट को नेता दोयम दर्जे का समझते हैं। उनके सवालों को टाल कर निकल जाना उनकी आदत है, क्योंकि प्रिंट के पास शब्द है और खबर प्रस्तुति के लिए स्थान। छवि दिखाऊ पत्रकारिता में शब्द से ज्यादा अंदाज और बाइट्स का महत्व है। ऐसे में प्रिंट के किसी पत्रकार का सवाल टाले जाने से दुख होना स्वाभाविक है। जरनैल की घटना के बाद कोई दर्जन भर ऐसे पत्रकार ऐसे मिले जिन्होंने कहा कि जो कुछ हुआ वह गलत नहीं था। उपेक्षा से आहत होने पर कोई भी वही करता जो जरनैल ने किया है। ऐसी प्रतिक्रिया देने वालों में से कोई भी पत्रकार सिख नहीं था। कहने का अर्थ यह कि यह संयोग है कि जरनैल सिख हैं और उनका सवाल सिखों की भावना से जुड़ा था। यदि वे कुछ और पूछ रहे होते तो भी नेता का व्यवहार वही होता जो हुआ और पत्रकार का विरोध वैसा ही रहता जैसा हुआ। हम यह नहीं कह रहे हैं कि जरनैल ने जो कुछ किया वह सही है, लेकिन खुद को लोकतंत्र का ठेकेदार घोषित करने वालों को यह समझ लेना चाहिए कि जब कलम की उपेक्षा होगी तब हथियार ही उपाय बचेगा। विरोध का तरीका बदल सकता है, विरोध नहीं।<br /><strong><span style="font-size:130%;">नरेन्द्र अनिकेत</span></strong><br /><em>उप समाचार संपादक<br />दैनिक भास्कर<br />जालंधर।</em>Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4454080457440530909.post-43760932144061023112009-03-27T13:49:00.000-07:002009-03-27T14:06:59.657-07:00इंदरधनुष के रंग<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEixzW1nur0rO8AKdmz2Kt1eeebuqxJ-Go28220W4HGAcZ3yRZODixl3lckp-6nkscdUKVsmb097F01PdTLJiVHAZzQp-LJln_Xx8I1zh3QvTPDiwjZAy6KEQFgqYTzV7D25lf7eIuWESBZm/s1600-h/nandan.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5317975493752778466" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 156px; CURSOR: hand; HEIGHT: 200px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEixzW1nur0rO8AKdmz2Kt1eeebuqxJ-Go28220W4HGAcZ3yRZODixl3lckp-6nkscdUKVsmb097F01PdTLJiVHAZzQp-LJln_Xx8I1zh3QvTPDiwjZAy6KEQFgqYTzV7D25lf7eIuWESBZm/s320/nandan.jpg" border="0" /></a> <div><em><span style="font-size:100%;">इंदरजीत नंदन पंजाबी के युवा कवित्रियों में जाना पहचाना नाम है। नंदन की कविता एक औरत की नहीं बल्कि सब की कविता है। उसकी कविता में इंदरधनुषी रंग हैं। जो सबको मोह लेते हैं। शहीद-ए-आजम पर पहली दफा महाकाव्य लिखने वाली इंदरजीत नंदन की करीब छह पुस्तकें प्रकाशित हैं। उनसे जीना सीखा जा सकता है। उनकी कुछ कविताएं-</span></em></div><br /><div><span style="font-size:100%;"><span style="font-size:130%;"><strong><span class=""></span></strong></span></span></div><br /><div><span style="font-size:100%;"><span style="font-size:130%;"><strong>दिन </strong><br /></span>सूरज निर्र्विचार होकर<br />नदी में डूब गया<br />केसरी पानी के तल पर<br />सिमृतियां फैल गईं<br />दिन समेट रहा है<br />अपने हिस्से की यादें<br />आज की होनी का<br />लेखा-जोखा...<br /><br /><span style="font-size:130%;"><strong>रात</strong><br /></span>कुदरत अपने नियम में है<br />अंधेरा उतर आया है<br />रात के आगोश में से<br />पौ फूटना<br />नित्य कर्म<br />सृजन का महान रहस्य...!<br /><br /><span style="font-size:180%;"><strong><span style="font-size:130%;">डर</span> </strong><br /></span>मेरा डर...<br />तुम्हारा डर...<br />सब का अपना-अपना डर...<br />यह कभी नहीं लौटने देता<br />हमें वर्तमान की दहलीज पर<br /><br /><strong><span style="font-size:130%;">मैं </span></strong><br />तुम और मैं<br />मैं और तुम<br />तुम्हारी मैं<br />इस से ज्यादा<br />क्या हम खुद को भी<br />हैं जान सके...?</span> </div>Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4454080457440530909.post-71067798534743794562009-03-27T04:05:00.000-07:002009-03-27T04:31:39.145-07:00आ रही है चमन से बू-ए-कबाब<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg1WWS6xkTH9kOW3akWst1mlFUebysQDAsdQ4IFSeNB-0arE2vm0XNq_4HtB6NfKKYOkRN4W3AWym8nmTEfP3h3Q3HMRZYikAMKhyphenhyphenG6O12boRRqUxglwczYoDdBA04vDWtAGqPP8Sc6kldT/s1600-h/bulbul_26843_md.gif"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5317827859443834354" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 262px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg1WWS6xkTH9kOW3akWst1mlFUebysQDAsdQ4IFSeNB-0arE2vm0XNq_4HtB6NfKKYOkRN4W3AWym8nmTEfP3h3Q3HMRZYikAMKhyphenhyphenG6O12boRRqUxglwczYoDdBA04vDWtAGqPP8Sc6kldT/s320/bulbul_26843_md.gif" border="0" /></a><br /><div><strong>आ रही है चमन से बू-ए-कबाब</strong><br />यह ग़ालिब के शेयर का वह मिसरा है जो बहादुर शाह जफर की बेटी के जहन में उस समय आया जब वह अपनी सखियों के साथ बाग में झूला झूल रही थीं। उन्होंने इसे अपने वालिद बहादुर शाह जफर से इसे पूरा करने को कहा। हलांकि वह खुद भी शायर थे पर वह इसे पुरा ना कर सके और अपने उस्ताद शायर शेख इब्राहिम ज़ौक से इसे पूरा करने की गुजारिश की लेकिन वह भी इसे पूरा नहीं कर सके। ज़ौक ने कहा कि इस शेयर को तो कोई फकीर शायर ही पूरा कर सकता है और दिल्ली में एक ही फकीराना शायर है, गालिब। चलते-चलते बात ग़ालिब तक आ पहुंची। उन्होंने ज़ौक और बहादुरशाह के कहने पर इस मिसरे पर पूरा शेयर कहने की बात मान ली।<br />ग़ालिब बहादुर शाह की बेटी और उनकी सखियों को उसी बाग में लेकर गए जहां झूल झूलते हुए यह मिसरा इल्हाम हुआ था। ग़ालिब ने दुख्तर-ए-बहादुरशाह जफर को उसी तरह झूला झूलते हुए मिसरा बोलने को कहा। बार-बार कहा और ग़ालिब खुद आंखे मूंद कर बैठ गए। वह बोलती रही, आ रही चमन से बू-ए-कबाब..आ रही है चमन से बू-ए-कबाब... अचानक ग़लिब बोल उठे,किसी बुलबुल का दिल जला होगा।<br /><br /><strong>आ रही है चमन से बू-ए-कबाब,<br />किसी बुलबुल का दिल जला होगा।</strong><br /><br />इतना सुनते ही बहादुर शाह की बेटी अश-अश कर उठी और ग़ालिब को झुक कर सलाम किया।<br />इस बात कर पता जब बहादुरशाह जफर और उनके उस्ताद शायर ज़ौक को चला तो उन्होंने ग़ालिब की खूब तारीफ करते हुए कहा कि इसे सच में ग़ालिब ही पूरा कर सकते थे।<br />यूं ही नहीं कहा जाता<br /><br />--गालिब का है अंदाज-ए-बयां और..</div>Unknownnoreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4454080457440530909.post-80109110276978958412009-03-26T00:01:00.000-07:002009-03-27T04:04:35.317-07:00मन के आंगन में उतरी एक गज़ल<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjRGCcMq3OCACr6U7VZPGKyk0MEMzopOpki6LFQZf07tK6KiYseKAABkiFXFgd5cWMF-Ssh_6CL4NQS4JLwJP40G_n0nqbc5TEjk-x7h82wptSzbxVn_8tcXLliZeK0V4ioYnEQViwXe7rb/s1600-h/sharda"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5317395265528204418" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 278px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjRGCcMq3OCACr6U7VZPGKyk0MEMzopOpki6LFQZf07tK6KiYseKAABkiFXFgd5cWMF-Ssh_6CL4NQS4JLwJP40G_n0nqbc5TEjk-x7h82wptSzbxVn_8tcXLliZeK0V4ioYnEQViwXe7rb/s320/sharda" border="0" /></a><br /><div><span style="font-size:85%;"><em><strong>आरकुट पर तफरीह करते हुए। हमें यह ग़जल मिली। श्रद्धा जैन की इस रचना में उन्होंने काव्य के प्रति अपनी पूरी श्रद्धा को उड़ेल दिया है। इसमें गहराई भी है और बुलंदी भी।</strong></em></span></div><div><span class=""></span><span class=""></span><span class=""></span></div><div><span style="font-size:130%;"><span class=""></span></span></div><div><span style="font-size:130%;">ग़ज़ल</span></div><div><span class=""></span></div><div><span style="font-size:85%;">आप भी अब मिरे ग़म बढ़ा दीजिए।</span></div><div><span style="font-size:85%;">मुझको लंबी उमर की दुआ दीजिए।</span></div><div><span style="font-size:85%;"></span></div><div><span style="font-size:85%;">मैने पहने हैं कपड़े, धुले आज फिर,</span></div><div><span style="font-size:85%;">तोहमतें अब नईं कुछ लगा दीजिए।</span></div><div><span style="font-size:85%;"></span></div><div><span style="font-size:85%;">रोशनी के लिए, इन अंधेरों में अब,</span></div><div><span style="font-size:85%;">कुछ नहीं तो मेरा दिल जला दीजिए।</span></div><div><span style="font-size:85%;"></span></div><div><span style="font-size:85%;">चाप कदमों की अपनी मैं पहचान लूं,</span></div><div><span style="font-size:85%;">आईने से यूं मुझको मिला दीजिए।</span></div><div><span style="font-size:85%;"></span></div><div><span style="font-size:85%;">गर मुहब्ब ज़माने में है इक ख़ता,</span></div><div><span style="font-size:85%;">आप मुझको भी कोई सज़ा दीजिए।</span></div><div><span style="font-size:85%;"></span></div><div><span style="font-size:85%;">चांद मेरे दुखों को न समझे कभी</span></div><div><span style="font-size:85%;">चांदनी आज उसकी बुझा दीजिए।</span></div><div><span style="font-size:85%;"></span></div><div><span style="font-size:85%;">हंसते हंसते जो इक पल में गुमसुम हुई,</span></div><div><span style="font-size:85%;">राज़ श्रद्धा नमी का बता दीजिए।</span></div><div><span style="font-size:85%;"><strong>-श्रद्धा जैन</strong></span></div><div></div><br /><br /><div><br /></div><br /><br /><div></div>Unknownnoreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-4454080457440530909.post-78042008532746984632009-03-09T23:37:00.000-07:002009-04-13T12:56:41.025-07:00गर्व कीजिए मगर गौर भी<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg1WoUC5vN58U7y_3857JkqNrej1BysJFZO3cP0ZVInI-NPDdQ-1l0m0IWU_i0DdGnLXmgM9CcH8qqdHZHdpEBaPGo_5OeHh8k65UZFtQ3F-4wq54yQ1kYo5rgySYyxKBQ3xBZMkgYsT7Bo/s1600-h/na.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5311447287219732530" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 101px; CURSOR: hand; HEIGHT: 153px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg1WoUC5vN58U7y_3857JkqNrej1BysJFZO3cP0ZVInI-NPDdQ-1l0m0IWU_i0DdGnLXmgM9CcH8qqdHZHdpEBaPGo_5OeHh8k65UZFtQ3F-4wq54yQ1kYo5rgySYyxKBQ3xBZMkgYsT7Bo/s320/na.jpg" border="0" /></a><strong><span style="font-size:130%;"><span class="">नरेंद्र</span> अनिकेत<br /></span></strong>स्लमडॉग मिलेनियर और स्माइल पिंकी को आस्कर मिलने से देश में उत्सवी माहौल है। यह जश्न अभी चलेगा। हम मुग्ध हैं कि हमें इस लायक समझा गया। इससे पहले एक बार और हम मुग्ध हुए थे, जब देश की बेटियों के सौंदर्य का लोहा दुनिया ने माना था। एक के बाद एक कई लड़कियां विश्वस्तरीय सौंदर्य प्रतियोगिताओं में सफल रहीं।<br />लेकिन, आत्ममुग्धता के शिकार भारतीय समाज को एक बात पर भी गौर करना चाहिए कि जिस दिन हम ऑस्कर का उत्सव मना रहे थे उसी दिन आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद के एक अस्पताल में एक मां अपनी नवजात बच्ची को बेच चुकी थी। उसने यह कदम वहां के सरकारी अस्पताल की फीस अदा करने में असमर्थतावश उठाया था। खबर लीक हो गई और बिकी हुई बच्ची मां के पास वापस पहुंच गई।<br />हैदराबाद एक ऐसा शहर है जहां से सबसे ज्यादा लड़कियां खाड़ी देश के शेखों से रुपए के बदले ब्याही जाती हैं या फिर घरेलू नौकरानी बनने के बहाने खाड़ी देश भेजी जाती हैं। कुछ साल पहले सूखे की स्थिति की भयावहता को दिखाने के लिए 19 साल की एक लडक़ी को खरीदा और फिर उसे खबर की तरह पेश किया था। अमीना की खबर तो शायद अब किसी को याद भी नहीं जिसने हैदराबाद और आंध्र प्रदेश में चल रही इस तरह की बातों को सामने लाया था।<br />हैदराबाद को हम निशाने पर शायद इसलिए भी ले रहे हैं कि वहां से खबरें हम तक आ जाती हैं। देश के कई अन्य हिस्सों में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है जहां से खबरें सामने नहीं आतीं और कई बातें पर्दे में रह जाती हैं। पंजाब में विदेश जाने के नाम पर जो कुछ होता है उसमें से सिर्फ ठगी की खबरें ही सामने आती हैं। इस राज्य में एक नई परंपरा भी चल रही है जिसकी खबर अभी तक बहु प्रचारित नहीं हो पाई है। वह परंपरा है विदेश जा बसे व्यक्ति की तस्वीर से शादी करने की परंपरा। ऐसी कई लड़कियां हैं जो विदा हो कर विदेश जाने के लिए अपने पतिदेव का इंतजार कर रही हैं। भ्रुण हत्या के लिए केवल पंजाब को दोषी ठहराना उचित नहीं है। देश के अन्य राज्यों में भी बेटे पाने की ललक है और उसकी आड़ में जो कुछ होता है वह सामने नहीं आता।<br />गर्व के इन क्षणों में हम एक और रिपोर्ट की याद दिलाना चाहते हैं। कोसी का कहर झेल चुके बिहार के उस बड़े इलाके से किशोर वय के लडक़ों का बड़े शहरों की तरफ आना। दलाल वहां सक्रिय हैं और अच्छी नौकरी और पैसे की लालच देकर बच्चों को देश के दूसरे हिस्से में ले जा रहे हैं। ऐसे ही कुछ बच्चों को पिछले दिनों बिहार के कटिहार रेलवे स्टेशन पर जीआरपी ने पकड़ लिया था। उनमें से कुछ बच्चों ने बड़े शहरों तक जाने के पीछे जो तर्क दिए उससे किसी भी गर्वोन्मत्त समाज का गर्व चूर-चूर हो जाता है। एक बच्चे ने बताया था कि उसकी बड़ी बहन की शादी के लिए पिता ने जो कर्ज लिया वह चुकता नहीं हो पाया। जो जमीन थी उसमें अब कोसी का बालू भर गया है, खेती हो नहीं सकती। महाजन का रुपया दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है और दूसरी बहन ब्याह के लायक हो गई है। वह बड़े शहर में जा कर नौकरी करेगा ताकि उसकी कमाई से पिता दूसरी बहन की शादी करा सकें और पहली की शादी का कर्ज चुकता कर सकें। यहां यह बताना मुनासिब है कि कर्ज कोई लाख दो लाख नहीं तीन से चार हजार रुपए का ही है। किसी को भी यह छोटी राशि लगेगी, लेकिन बचपन को लीलने के लिए यह रकम कम नहीं है। उन्हीं बच्चों में सात साल का एक बच्चा जो कह गया वह हमारे सभी जश्न पर पानी फेरने वाला है। उसकी भी कहानी पहले के जैसी ही थी। उसकी भी बहन की शादी होनी थी और कोसी की बाढ़ के बाद हालात ऐसे हो गए थे कि रुपए का प्रबंध अगले पांच सालों में भी संभव नहीं था। इसलिए वह दिल्ली जा रहा था, नौकरी करने। उसने बताया कि यदि समय पर बहन की शादी नहीं हो पाई तो समाज उसके परिवार को बहिस्कृत कर देगा।<br />ये सूचनाएं हमारे उस समाज की बानगी है जो गरीबी और उपेक्षा का दंश झेलता है। उस दंश को महिमामंडित कर जो कुछ प्राप्त हो रहा है उस पर हम गर्व कर रहे हैं। हो हम इस बात पर भी फख्र कर सकते हैं कि हमारे यहां आज भी महाजनी सभ्यता का क्रूर पंजा जीवित है। यह जिंदा है तो वह वर्ग जिंदा है जिसकी कहानी हमें गर्व करने के लायक बनाती है।<br />हम भारतीय इस बात का अनुमान नहीं लगा पाते हैं कि दुनिया हमारा सम्मान क्यों कर रही है। यह अंतरदृष्टि हमारे पास नहीं है। 90 के आसपास दुनिया की अर्थव्यवस्था में मंदी की जैसी स्थिति पैदा हुई थी। उस समय भारत के बड़े बाजार की तरफ संपन्न देश देख रहे थे। यहां के बाजार में उपभोक्ताओं को रिझाने का माध्यम यहीं की लड़कियां हो सकती थीं इसलिए लड़कियां सुंदर होने लगीं। आज भी मंदी है और भारत की विकासशील अर्थव्यवस्था पर उसका किंचित असर ही है। मंदी के इस अवसाद को दूर करने के लिए दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमरीका को काले ओबामा में आशा की किरण दिख रही है और वहां के लोगों को स्लमडाग मिलेनियर में उस अवसाद से बाहर निकले की जीवनी शक्ति।<br />यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि विकसित देश आपको सेंतमेत में कुछ दे देंगे। उनके देने में भी लेने का भाव निहित होता है। वे जो दे रहे वही ले भी रहे हैं। यही लेनदेन बाजार का मूल मंत्र है।<br />सफलता पर गर्व करना चाहिए। हम भी गर्व कर रहे हैं। धरावी को गर्व है। उत्तर प्रदेश को गर्व है। पंजाब को गर्व है। तमिलनाडु को गर्व है। केरल को गर्व है। पूरे देश को गर्व है। गर्व के इन क्षणों में गौर करने के लिए और भी स्लमडाग हैं और कई पिंकी भी जो मुस्कुराने के लिए प्रतीक्षारत हैं। जिनके पास अस्पताल की फीस अदा करने को पैसे नहीं हैं। जो महज दो हजार की फीस के लिए बिक रही हैं या बेची जा रही हैं। इन पर गौर भी कीजिए।<br /><strong><em>उप समाचार संपादक, </em><em>दैनिक भास्कर, डीसी दफ्तर के समीप, जालंधर, पंजाब</em></strong>Unknownnoreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4454080457440530909.post-37622025852216844812009-02-26T02:10:00.000-08:002009-02-27T02:02:07.862-08:00दिल से<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj0TThavhOVHZmSkSsu64coy1QBRicuOrF8lhOWQFtoQ-ehX_Q3Q9CX7G5mW1s8REKro4H9iAoAKRpk3CQ08wj8ST_oxEaw-04Tv6A0uNnKfZLiTRGh_eMnMAz4K8xGvTusXU0DT-j6NaZm/s1600-h/03.JPG"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5307048312658752722" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 128px; CURSOR: hand; HEIGHT: 164px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj0TThavhOVHZmSkSsu64coy1QBRicuOrF8lhOWQFtoQ-ehX_Q3Q9CX7G5mW1s8REKro4H9iAoAKRpk3CQ08wj8ST_oxEaw-04Tv6A0uNnKfZLiTRGh_eMnMAz4K8xGvTusXU0DT-j6NaZm/s320/03.JPG" border="0" /></a> <span style="font-size:130%;"><span class="">इस बार पढ़ें इबलीस <span class=""></span></span></span><br /><div><span class=""><span class=""><em><span class="">इबलीस</span> पेशे से डाक्टर, शौक से पत्रकार और दिल से कवि है। संस्कृति और लोकयान के बारे में उसकी जानकारी कमाल की है। अपने ज्ञान भंडार के जरिए मिलने वाले को अपना कायल कर लेने की कला भी उसे खूब आती है।</em> </span></span></div><div><span class=""></span></div><div></div><div><span style="font-size:130%;"><span class=""></span></span></div><div><span style="font-size:130%;"><span class=""></span></span><span style="font-size:130%;"><span class=""></span></span><span style="font-size:130%;"><span class=""></span></span></div><div><span style="font-size:130%;"><span class=""></span></span> </div><div><span style="font-size:130%;"><span class=""></span></span> </div><div><span style="font-size:130%;">प्रामर्श</span><br /><br />दोस्तो...<br />चांदी के चंद सिक्के अद कर<br />चद्दर-कुशई करत समय<br />काभी भूल कर भी<br />वेश्या की आंखो में मत झांकना<br />वर्ना<br />उसके आंसुओं के खारे समंदर मे डूब जाओगे<br />और हो सकता कि वह<br />मां-बहन बहु या बेटी बन<br />आपके सामने आ खड़ी हो<br />और धरती<br />चाहते हुए भी<br />समा जाने के लिए<br />आप को जगह ना दे...!!!<br /><br /><strong><span style="font-size:130%;">ऐ कातिल</span></strong> </div><div>ऐ मेरे क़ातिल<br />तुझ से तो<br />तेरी तलवार ही<br />गैरतमंद निकली<br />कत्ल करके मेरा<br />छुपा लिया है जिसने<br />मुंह अपना<br />म्यान में...!!!<br /><span class=""></span></div><div><span style="font-size:130%;">पिजंरा<br /></span>पिजंरे ही पिजंरे हैं जारों ओर<br />मोह के!<br />माया के!<br />ममता के!<br />दौलत के!<br />शोहरत के!<br />बदनामी के!<br />गुमनामी के!<br />मनुष्य कैद है...<br />आकाश मुंह चिढ़ा रहा है।<br /><br /><span style="font-size:130%;">हथेलियों से गिर चुकी दुआ<br /></span>न घोड़े है<br />न घुड़सवार।<br />उठता है तो धूलि का $गुबार<br />सुनाई पड़ती हैं<br />तो घोड़ो की टाप<br />या फिर<br />मुंह पर पल्लू ओढ़े सिसक रही<br />उस औरत की सिसकियां<br />झोंक दिया गया जिसका पति<br />अमन के नाम पर<br />जंग की भट्ठी में।<br />दूर... प्राथनाघरों में से </div><div>ओम् शांति-शांति<br />व सरबत के भले की<br />आवाजें सुनाई दे रही हैं<br />पर $फौजी की पत्नी से बढ़ कर<br />अमन के लिए अरदास<br />कोई नहीं करता...!!!<br /><br /><span style="font-size:130%;">आंखे<br /></span>रंगीन सपनों की कैनवस ही नहीं,<br />यह $कतलगाह भी होती हैं<br />जहां खुद-ब-खुद चल कर पहुंचता है<br />अकसर<br />हमारा कोई न कोई सपना<br />जि़बाह होने के लिए...!!!<br /><br /><span style="font-size:130%;">बगावत </span><br />वह बीज...<br />जो पचाया नहीं जाता<br />जब किसी भी पक्षी अमाश्य से<br />तो फिर<br />उगना ही होता है उसे<br />वृक्ष बन कर<br />महल-मुनारों की दिवारों में<br />दरारें डालने के लिए...!!!</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4454080457440530909.post-51307075394983606872009-01-04T23:55:00.000-08:002009-01-05T00:00:56.241-08:00एक प्रयासप्रसंग हमारा एक साहित्यक प्रयास है। शीघ्र ही आप इसे एक पत्रिका के रूप में पाएंगे।<br />अपने सुझाव हमें <a href="mailto:ashokajnabi@gmail.com">ashokajnabi@gmail.com</a> पर भेजें।Unknownnoreply@blogger.com0